जल रही है पृथ्वी जल रहा आसमाँ
जल रहा है जन मन जल रहा सारा जहाँ ।
हर तरफ हाहाकार है हृदय विदारक चीत्कार है
रुह को भी जो कपां दे फैला वो अंधकार है ।
आतंकवाद का है कहर बेईमानी का बोलबाला
नफरत की इस आंधी में ईमान ने हथियार डाला ।
सूरज की लालिमा दब गई खून की होली में
पवन का वो शीतल झोंका बह गया बवंडर में ।
ऐसे दर्द के आगे तो माँ के भी आँसू बह निकले
सम्भल जाओ अब भी तुम धरती को रौदने वाले ।
होता है संहार दुष्टों का हर हाल में
माँ जिसने जन्म दिया पहुँचा ना दे तुझे काल में ।
ना लो परीक्षा संयम की अब इन्तहाँ हो चुकी
आने दो उजियारा फैलने दो खुशी ।
सूरज की लालिमा जब ऊपर आयेगी
ठण्डी पवन झोंको से मन शीतल कर जायेगी
शान्ती होगी इस विश्व में खुशहाली छायेगी
तभी मेरी माँ के भी चेहरे पे मुस्कान आयेगी ।
निवेदिता कौशिक